हमारा सम्पूर्ण जीवन शक्तियों द्वारा ही चलायमान है, लेकिन इन शक्तियों पर नियंत्रण नहीं है, जिसके कारण जिस प्रकार का जीवन साधारण व्यक्ति जीना चाहता है, वैसा जीवन जीना उसके लिये सम्भव नहीं हो पाता है, बहुत अधिक धन होने पर भी व्यक्ति सुखी नहीं कहा ज सकत है दृष समस क क पड़त है, च वह पीड़ हो भय सम पीड़ अथव अथव कोई भव भव भव है है है उसी जीवन क नियंत वश में हो क वश वश में है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है प प प प प है है है है है है है प जहां तक सहयोग एवं दिशा प्रदायक का सम्बन्ध है, सभी शास्त्रें में सबसे बड़े सहयोगी मार्गदर्शक गुरू को ही कहा गया है, गुरू द्वारा शिष्य को सदैव उसकी उन्नति का ही मार्ग प्राप्त होता है, गुरू के शरण में आकर तथा शुद्ध मार्ग से की गई कोई भी गरू भक्ति निश्फल नहीं हो सकती.
गुरू के पश्चात् सबसे बड़ा सहयोगी परिवार है, और परिवार में भी जो पूर्वज हैं, उनका स्थान उच्च है, जीवित रहते हुये आपस में कई बार मतभेद, मनमुटाव एवं विरोधाभास हो सकता है, लेकिन मृत्यु के पश्चात् यह सब सांसारिक स्थितियां समाप्त हो जाती हैं , जिस पित
गीता में लिखा गया है कि व्यक्ति शरीर का अन्त कर देने से ही समाप्त नहीं होता है, वह तो नये वस्त्र धारण करने की प्रक्रिया सम्पन्न कर देता है, स्थूल शरीर का त्याग कर सूक्ष्म शरीर धारण कर लेता है, विभिन्न शास्त्रें का कथन है, जीवन यु मृत कुटुम के है है है उसे उनसे हत वह जीवन तो तो अपने प्राप्त नहीं होता है, तो अत्यन्त निराश हो जाता है, यदि पितरों को श्रद्धा पूर्वक पूजा, ध्यान एवं आवाहन किया जाय, तो वे उसके प्रत्येक कार्य में ऐसे सहयोगी बनते हैं, कि चिन्तायें एवं समस्यायें उनके जीवन से दूर ही हो जाती हैं, इसीलिये जो पू, जो क हैं, वे पूजन से पहले क ध क हैं हैं उनक आह
वेद
पितरेश्वरों की शक्ति सूक्ष्म शरीर होने के कारण अत्यन्त विशाल बन जाती है, वे शक्ति एवं सिद्धि के निश्चित स्वरूप बन जाते हैं, उत्तम होने के कारण स्वास्थ्य, वायु, गर्भ आदि कार्यों के नियंत्रक बन जाते हैं, वे अपनी शक्ति से आने वाली घटनाओं को ूप ूप हैं हैं हैं तो वे अपनी संत को सकते सकते सकते सकते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं क हैं हैं सकते जीवन घोल हैं हैं उनके लिये कोई असम नहीं हत हत है आवश आवश वे वे वे आवश आवश आवश .
धर्म, साधना एवं शास्त्रें में रूचि रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कोई भी श्रेष्ठ शुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले अपने पूर्वज पितरेश्वरों का ध्यान अवश्य करता है, लेकिन यह स्थिति ही पूर्ण नहीं है, उन्हें पूर्ण रूप से अपने अनुकूल बन कर प्रत्येक कार्य में सहयोग प्राप्त करने हेतु विशेष साधना की आवश्यकता रहती है, शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध दिवसों को शुभ कार्यों के अनुकूल नहीं माना जाता है, इस समय वायु की गति एक विशेष प्रकार की रहती है, आकाश में तारा मण्डलों का एक विशेष समूह बनता है और यह सिद्ध हो चुका है, कि इस समय पूर्वज पितरेश्वर सूक्ष्म शरीर से इस पृथ्वी लोक पर अपनी पूर्ण गति से विचरण करते हैं, यदि इस समय कोई साधक पूर्ण विधि विधान सहित पितरेश्वर साधना करे, तो उसे अन्य समय की अपेक्षा अधिक सरलता से पूर्ण सफलता பிராப்த ஹோ சகதி है.
इस विशेष साधना में सबसे बड़ा माध्यम भावना है, अपनी समस्त इच्छाओं, कर्तव्यों को भावना के रूप में प्रकट कर देने से पितरेश्वर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, उनके प्रति पूर्ण रूप से सम्मान देते हुये, सहयोग की कामना ही इस साधना का विशेष लक्ष्य है, ति ति सकत, औ औ पीछे शुद हृदय से से एवं से से से
यह सत्य है, कि पितरेश्वरों के कारण ही वर्तमान शरीर अस्तित्व में आया है, पालन-पोषण और विकास हुआ है, जीवन को बनाने में उनका सहयोग प्राप्त हुआ है, उनके प्रति भक्ति नहीं प्रकट करने का यही अभिप्राय होगा कि व्यक्ति अपने अस्तित्व को ही नक है है उनके प नि प ह से आवश है औ यही यही
भारतीय आदि ऋर्षियों की यह निश्चित धारणा और मान्यता थी कि आने वाले समय में मनुष्य नित्य प्रति अपने पूर्वजों का स्मरण, तर्पण, समर्पण नहीं करेगा काल के क्रम में वह उन्हें भुलता ही रहेगा इस कारण उन्होंने श्राद्ध पक्ष निश्चित किया आश्विन नवरात्रि से पहले आने वाले 14 दिन के पक्ष को पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध पक्ष इस बार 10 सितम्बर से 25 सितम्बर से सम्पन्न किया जाता है इन दिनों में अपने पितरेश्वरों को तर्पण समर्पण सम्पन्न किया जाता है और यदि कोई पितरेश्वर किसी योनि में भटक रहा है अथवा उसकी आत्मा को पूर्ण गति प्राप्त नहीं हुई है तो वह सदगति को प्राप्त हो जाये और ब्रह्माण्ड में देव रूप में स्थित हो जाये, कुल देवता के रूप में स्थित हो जाये और उसे पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो जाये जिससे जीवन मरण के बन्धन से मुक्त होकर अपनी भावी पीढ़ी जो इस संसार நான் அபி கதிஷீல் வாழ்கிறாள்.
पितरेश्वर मुक्ति तर्पण साधना दो भाग में सम्पन्न की जाती है प्रातः काल पितरेश्वरों से सम्बन्धित एकान्तिक साधना सम्पन्न की जाती है और अभीजित मूल अर्थात 12 बजे के बाद शुद्ध भोजन इत्यादि बनाकर समर्पण सम्पन्न किया जाता है। यहां यह ध्यान रहे कि साधना का प्रथम खण्ड आपको स्वयं सम्पन्न करना है और साधना के द्वितीय खण्ड में संकल्प आपको स्वयं लेना है इस कार्य हेतु किसी ब्राह्माणइत्यादि को आमंत्रित कर भोजन विधान सम्पन्न करना है यह भोजन विधान भी अत्यन्त शास्त्रेक्त रूप से सम्पन्न किया जाता है .
यह साधना श्राद्ध दिवसों में कि जाने वाली साधना है, इसमें प्रथम दिवस का विशेष महत्व है, प्रथम दिवस से पितरेश्वरों का आह्नान कर उन्हें स्थापित किया जाता है और प्रतिदिन निश्चित संख्या में मंत्र जप एवं पूजन कर सिद्ध किया जाता है, जिससे कि वे साधक வசீபூத ஹோகர் உசே அபனே பாதுகாப்பு
स क का सर्प(आप सुनार से बनवालें) துளசி பத்ர தேவை.
श्राद्ध के प्रथम दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें, यह साधना सूर्योदय के साथ ही प्रारम्भ कर देनी चाहिये, इस हेतु आवश्यक है, कि प्रातः अत्यन्त जल्दी उठकर सभी सामग्री की व्यवस्था एवं स्नान वगैरह कर अपने पूजा स्थान को शुद्ध कर साधना क्रम के अनुसार சாமக்ரி ரக் டென்.
अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर पांच सोमेश्वर रूद्राक्ष स्थापित करें, काले रंग से प्रत्येक सोमेश्वर रूद्राक्ष के चारों ओर एक घेरा बना दें, उसके पश्चात इन पांचों रूद्राक्षों के आगे क्रम वार चावलों की ढेरी पर पांच लघु नारियल स्थापित करें, एक ओर घी का दीपक अवश्य जला दें, अपने आसन के नीचे छोटा चांदी का सर्प स्थापित कर दें, जिससे कि किसी भी प्रकार के भूत पिशाच आदि आपको हानि नहीं पहुँचा सकें, अपने सामने जहां आपने पांच त्रिदिशा वाले सोमेश्वर रूद्राक्ष स्थापित किये हैं, उन्हें सिन्दूर अवश्य சதாயே ததா யே ரூத்ராக்ஷ காலே திலோங் கி தேரி பர் ஸ்தாபித் கரனே சாஹியே.
अब पूजा स्थान से बाहर आकर तांबे के पात्र में जल ले कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर 11 बार जल की अंजली दें, तथा पितरेश्वरों के आह्नान हेतु प्रार्थना करें, इसके साथ ही प्रत्येक अंजली के साथ निम्न मंत्रें का उच्चारण करें- ऊँ लं नमः ऊँ वं नमः ऊँ रं नमः ऊँ यं नमः इसके पश्चात् बिना किसी ओर देखे, सीधे पूजा स्थान में अपना आसन ग्रहण करें तथा निम्न ध्यान मंत्र का पांच बार जप करें, प्रथम बार जप करते हुये, पहले सोमेश्वर रूद्राक्ष को घी मिलाकर तिल अर्पित करें तथा க்ரியா பாஞ்ச் பார் தோஹராயே-
इस प्रकार शुद्ध मन से किये गये इस ध्यान से पितरेश्वर अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं, अपनी भावनाओं को पूर्ण रूप से प्रगट करते हुये उनसे हर दृष्टि से सहयोग प्राप्ति की इच्छा प्रगट करें, इसमें किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं होना चाहिये, क्योंकि ये पितरेश्वर आपके अपने हैं, इसके पश्चात सामने रखे हुए लघु नारियलों का चारों ओर इस प्रकार अर्द्ध चन्द्राकर घेरा बना दें, और प्रत्येक लघु नारियल पर केसर, पुष्प, घी, चावल, तुलसी पत्र अर्पित करें, यह लघु नारियल प्रयोग इस साधना में अत्यन्त आवश्यक है यह यह स है है को ूप से आपके यह क देती देती है है।
पश पित बीज में जो जो म में ज किसी किसी प किसी
प मंत प शक लिये है इसकी प उसी उसी प बैठे बैठे बैठे बैठे बैठे जप जप जप जप இந்த பிரகாரம் பிரத்யேக தின பூஜை விதானம் மற்றும் பீஜ் மந்திரம் பாஞ்ச் மாலா போன்றது.
यद्यपि प्रत्येक साधक जिसने भी यज्ञोपवित धारण किया है और दीक्षा ली है वह इस द्वितीय भाग को स्वयं सम्पन्न कर सकता है स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन बनाये उसके लिये आप स्वयं संकल्प लेकर यह क्रिया करें आगे जहां ब्राह्मण शब्द है उसका तात्पर्य व्यक्ति स्वयं है यदि आप சாஹே தோ கிசி அன்ய பிராமண கோ பீ புலா சகதே ஹாய் ஜோ கி ஸ்னான் கர் ஷுத்ரத்.
உசகே பச்சத் ஆப சுயம்
भगव णु णु बन उसमें जो भोजन भोजन भोजन हो उस प तुलसी तुलसी दल
में में है प खें ग है है औ औ निम निम मंत बोलते हुए प
இசகே பாத் தோடா சா போஜன் ப்ராஹ்மனோன் பாய் ஒரு ரக் கர் சர்ப் கிராஸ்.
இசகே பாத் அக்னி கோ பக்கி ஹுயி சாமக்ரி மற்றும் க்ரித் கா பாக் நிம்ன மந்திரம்.
ब ह
(தண்ணீரை விடுங்கள்)
இசகே பாத் ப்ரஹ்மர்ப்பண காரிய சம்பந்தமான அர்த்தம்
जल चोडे and नमस्कार कहे ब्रहमाणों भोजन क्रहन करने कृपा.
சாஸ்திரங்கள் மர்யாதாவின் அனுசாரம் மற்றும் காரிய சம்பந்தம் ரியா சம்பன்ன கரெம், அர்த்தம் பிராமண போஜன பிராரம்ப் கரனே செ பூர்வ நிம்மன் மந்திரம் தே(ஷ்ராத்த போஜன் கரதே சமய சோடி கொல் தேனி சாஹியே).
ஃபிர் பாயே ஹாத் சே ஆன்கோங் மெம் ஜல் ஸ்பர்ஷ் கரேம். पश भोजन भोजन क इस से आप आप औ ब द द गय सम सम है है
प दो में क किय है औ प स के लिये दोनों ही खण को को पू आवश இந்த பிரகார சாதனா கர்னே சே பிதரேஷ்வர் தோஷ முக்தி பிராப்த் ஹோதி உள்ளது.
பெறுவது கட்டாயமாகும் குரு தீட்சை எந்தவொரு சாதனத்தையும் செய்வதற்கு முன் அல்லது வேறு எந்த தீக்ஷத்தையும் எடுப்பதற்கு முன் மதிப்பிற்குரிய குருதேவிடமிருந்து. தயவு செய்து தொடர்பு கொள்ளவும் கைலாஷ் சித்தாஷ்ரம், ஜோத்பூர் மூலம் மின்னஞ்சல் , , Whatsapp, தொலைபேசி or கோரிக்கை சமர்ப்பிக்கவும் புனித-ஆற்றல் மற்றும் மந்திரம்-புனிதப்படுத்தப்பட்ட சாதனா பொருள் மற்றும் கூடுதல் வழிகாட்டுதல்களைப் பெற,
வழியாக பகிர்ந்து: