आसी ही तो है मृगाक्षी रूप गर्विता. ूप सम, जो जो उसमें हो को औ ही ग जो घंटियों की त हुये हुये ज हो क क में में में अपने பூல் ஜாதி எப்படி இருக்கிறதா, அப்படியா? तो से से में भी ज है, सौ-सौ दीपक, यों दीप अभी न हो हो फि लौट आई हो, उसे भी लग आई जो जो जो जो जो भीत से झ श छोटी औ सुघड़ दंत पंक की से भ है है है मन मन में जीवन जीवन जीवन में उत क द द एक चढ़ औ कपोलों कपोलों जिनकी कोई ही नहीं नहीं औ योंकि योंकि खिलखिल की ही की अपन चिंतन छोड़ म भ भ भ भ பாடே, விசுவாசம் இல்லை ஹோதா கி அஸா நாரி ஸ்வர் பீ ஹோ சக்தா ஹே. आभ आभ वक्षस्थल को मर्यादा में बांधने का असफल प्रयास करते स्वर्ण तारों से रचित आभूषण मण्डल——- जिसके शरीर से आती मादकता की ध्वनि इन नूपुरों के संगीत को भी अपनी परिभाषा भूल गया हो और निहार रहा हो मृगाक्षी के चेहरे को खुद अपने-आप को वहां खिला देखकर आश्चर्यचकित हो कर.
तभी तो जैसे भी हो ऐसी को अपने जीवन में क अपने को पू देने के के के के के के के के के सम लिखने ब भी वह वह नहीं मिल मिल ही ब में उन उन सम क क पड़ गय श औ को यौवनव बन क यौवन के में तो फि व है है स स शरीर निरोग हो लेकिन उसमें यौवन की छलछलाहट न आये, उसमें कुछ प्राप्त कर लेने की, किसी को अपना बना लेने की अदम्य लालसायें न उफन रही हों तो फिर वह यौवन किस अर्थ का— और यही उपाय नहीं मिल रहा था धनवन्तरी को और न वे बन रहे ते चिक्त्स जगत क आद्वीती आचार्य. कितने प्रकार की जड़ी-बूटियों, कितने प्रकार की भस्म, कितने प्रकार के लेप और सभी प्रकार के रस का प्रयोग करके देख चुके थे, लेकिन कोई नहीं सिद्ध हुआ उनकी आशाओं पर पूर्ण रूप से खरा उतरता हुआ और तभी उन्हें प्राप्त हुआ यह साधना सूत्र . में खिलेगी इस शरीर और मन में यौवन की तरंगे और सच भी तो है, बिना सौन्दर्य साक्षात् किये, बिना ऐसे सौन्दर्य को बांहों में भरे, फिर कहां से फट सकी है, इस जर्जर शरीर में यौवन की गुनगुनाहट और उल्लसित हो गये आचार्य धन्वन्तरी चिकित्सा शास्त्र இந்த பரிபூர்ணதா க ரஹஸ்ய பிராப்த் கர்.
நீங்கள் சித்தாந்தம் ஆச்சார்ய ஹுயே, இந்த சிகிச்சை மிகவும் இல்லை, சாதனம் பாகம். மேலும் உண்ஹோன்னே நிகாலி ம்ருகாக்ஷி ரூபம் கர்விதா तो है कि खुद गयी गयी गयी युक युग पु प क को को को औ त प बनी ूप ग ग ग ग இசனே ஃபிர் ஆகே மார்க் ப்ரஷஸ்த் கர் தியா பிரத்யேக் சாதக் கேலியே ஜோ ஆதுர் ஹொவ் அபனவ். आसे सौन्दर्य का सानिध्य पाकर अने जीवन में कछना रचित कर देने के लिயே. एक साधारण सी अप्सरा साधना नहीं या सामान्य मृगाक्षी रूप अप्सरा साधना नहीं यह तो अप्सराओं में भी सर्वश्रेष्ठ, रूप का आधार, रूप गर्विता की उपाधि से विभूषित, एक नारी देह में घुला सौन्दर्य अपने रग-रग में बसा लेने की बात है। ब स
किसी भी गुरूवार अथवा रूपचतुर्दशी महापर्व को पुष्पदेहा अप्सरा चैतन्यता प्राप्ति दिवस सांयकाल जब सूर्य अस्त हो जाये तब अत्यंत उल्लसित मन से साधना में प्रवृत हों, पुरूष साधक पीली धोती और स्त्री साधिका पीले रंग के वस्त्र तथा नूतन गुरू चादर और इत्र आदि से अपने को सुगन्धित கர் லேன் திஷா பந்தன் இல்லை.
ेशमी त त नमः कुंकुंम कुंकुंम से से से लिखक त त इसक घी का दीपक प्रज्जवलित रहे. 108 दिन की सधना है. பிரதிதின் சாதனா உபராந்த யந்திரம் ஏவன் மாலா கோ வஹீம் ஸ்தாபித் ரஹனே தே ததா உசே த்வதே.
பிரதிதின் ஒரு மாலா அர்த்தம் 108 பார உச்சரண கரனே சாத்-சத் இறுதி நாள் இந்த மந்திரம் 11 ஆம் தேதி. अतः उस दिन में में बैंठें बैंठें बैंठें को भ औ पूजन स स सुगंधित सुगंधित पुष यंत इस स आवश है है के होने होने क औ कोई भी विघ से उपस होते होते उपस
ण सुगन बढ़ती य है य य ध हो हो है ठीक है है है हो है है है है हो हो
इस प्रकार यह जीवन की परिवर्तनकारी साधना सम्पन्न होती है और आधार बन जाती है आगामी साधनाओं की सफलता का क्योंकि जहां ऐसी श्रेष्ठ पुष्पदेहा का साहचर्य हो वहीं प्रेम की कोमलता है, फिर वहीं यौवन की चमकमी बिजली जैसी तीव्रता है और जो आधार है किसी भी साधना யா வித்யா கோ பிராப்த் கர் லேனே கா. ஜஹாம் ப்ரேம் கா ஜாகரண் ஹோதா ஹாய், வாஹீம் அனந்த சம்பவங்கள் துவார குலதே. யதி பிரேம் கா ஹீ அபாவ ஹோ தோ ஜீவன் மென் உத்சா, உமங், நவசேதனா, ஸ்ஃபூர்தி
ஜினகே மன் மென் பிரேம் பைதா ஹோதா ஹாய். स वतः ही इन गुणों ज है से आनन ही ही स ही उनके उनके उनके स आस आस आस आस आस आस स स ऐस नव यौवन जो मधु से से हो उसी मचलते प तो सैकडों युवक अपन सबकुछ क को तैय हते हते तो होत होत होत होत औ औ औ मृग मृग
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