थिति में को ही के द द घ झेलने पड़ते है औ औ निकलते है है है औ औ निकलते सतह सतह लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती लगती तो द्वन्द् समाप्त हो जाता है, तब गुरूदेव एक शुद्ध ज्ञान का, शुद्ध विचार का बीजारोपण करते हैं और फिर उस विचार के आनन्द में व्यक्ति निर्द्वन्द् हो जाता है, एक खुमारी में डूब जाता है और फिर वह जिस कार्य को हाथ में लेता है, உசே சபலதா மில் ஜாதி ஹே.
द जीवन के किसी क हो हो क होन एक प एवं आवश है जीवन एक धि होने होने के के के के के के के के व ति के की की होती है है है तभी तो एक एक आलोड़न आलोड़न होत है, वह यह सोचने सोचने लगत लगत कि यह ठीक ठीक लगत लगत ऐஸா ஹோ பாயேகா யா இல்லை ஹோ பாயேகா?
आशे ही नेक विरोधाभासी विचारों की मध्य को दनव और क्लेश की दिजेख़ा व क क हो हो, वह नि व हत है है है डोल ज है है के न ति हो मन मन
प ஜப் தக் தஹி கோ மதனி சே பூரி தரஹ மத் நஹீம் தியா ஜாதா தப் தக் ஷ்வேத் ஸ்நிக்தமக். ू यों यों है अनेक अनेक से द मक स स में तटस होक स स स में स
नि स में ही होत है है है के के द वन द आत आत ही है य तथ को को को तथ कृति भी ट मिलत है जब आंधी है के के पत पत हो हैं प हो हो हो हो हैं हैं प में में में द थिति थिति विचलित विचलित है जो तन तन को को इस इस को इस को जीवन क क स र र நீங்கள் பௌதிக் ஜகத் மென் பீ சபலதா பிராப்த் ஹோ பதி ஹெய்.
த்வந்த்தோ ஹர் நபர் வாழ்வில் அது உள்ளது, பரந்து சுயம் செய்ய வேண்டும் वि विच क किंक हो है अपन लक प भूल है है है वह वह वह दुःख दुःख जो इस
सभी सभी क யதி ஸ்வயம் ப்ரியாஸ் கியா ஜாயே, சேஷ்ட கி ஜாயே டோ மன் மென் மென் சுப விசாரம் கா ஸ்தாபன். इन शुभ शुभ को हम हम अपने जीवन उचित दिश की है है, क प शक ति ही समस समस
கீதா என் கஹா கயா ஹாய், கி 'சஞ்சயாத்மா வினஷ்யதி'
तो इसक आशय ही यही है, कि संशय या संदेह करने से भ्यक्ति टैजाटा.खाटा த்வந்த்கி யஹ் ஸ்திதி தோ அர்ஜுன் கே சாத் பீ தி. वह नि नहीं क प ह थ, कि कि उन बन प र उठ, जिनके स उसने जीवन द ण ने ने निव क किय औ ज ज होग तो उत प प
होगा या नहीं होगा, कर पाऊंगा या नहीं कर पाऊंगा जैसी स्थिति व्यक्ति को अन्दर तक तोड़ देती है, परन्तु शायद ये बात अनुभव सभी ने की होगी, कि ऐसी स्थितियों में ही व्यक्ति बड़ी आतुरता से ईश्वर को याद करता है, सद्गुरू को याद करता है और जब उसके कदम गुरू चरणों की ओर बढ़ते है, तब उसे आनन्द का अथाह सागर लहराता हुआ मिल जाता है और वह अपने द्वन्द् से विमुक्त होता हुआ निश्चिन्त हो जाता है, वह यह समझ जाता है, कि उसकी प्रत्येक क्रिया में गुरूदेव सहायक है . फि भी यदि कोई कोई, कोई द है ही उसके ही कंकड़ अभी अभी है है के के गु हे ूपी खेत खेत ूपी ूपी ूपी खेत खेत खेत खेत खेत खेत खेत यः य जो स्तिति पैदा है, वह आक अस्थाय (அல்ப் காலிக்) ही प्रतीत होगी. $ करता ही है.
स बड़े बड़े हुए के है उन सबके पीछे पीछे उन में में में में में में में चल चल चल चल चल चल चल चल चल चल उन उन उन पीछे पीछे पीछे पीछे पीछे पीछे पीछे पीछे पीछे सबके सबके है हुये हुये हुये हुये हुये हुये हुये सबके पीछे पीछे पीछे उन में ஆவிஷ்கார் யா சித்தாந்த பனகர் சமாஜ் சமனே ஐயா. व म म सिद कह उसके उसके उसके म म म में में सत सत सत सकत द त थ थ ह सत सत सत सत सत सत सत है, कैसे क किस किस पूछने के लिये उसे कोई है है है क उत उसके अन से से ही ज है की एक एक एक एक एक
यदि हम भारतीय इतिहास में अवलोकन कर देखें, तो ऋषि काल में अनेक शास्त्रार्थ हुआ करते थे, यह द्वन्द् ही तो है दो परस्पर विपरीत विचारों के मध्य, परन्तु इसके परिणामस्वरूप किसी एक मत या सिद्धान्त की विजय होती थी और इस तरह एक नवीन विशुद्ध ज्ञान உவர் கர் சமனே ஆதா தா.
சாதக் ஜீவன் மென் பி த்வன்த்வாத்மக் ஸ்திதி கோ இசி சகாராத்மக் தரிசனம் செய்கிறது. य य சாந்த சித்த் சே இன் த்வந்தோங் கோ சாட்சி பவ சே தேகதா ரஹதா ஹாய், அது சரி. द तो तो ऊ है, एक छटपट होती है एक होती है को लेने की की द द ही ही की सफलत की है होत होत है है
इसीलिये सद्गुरूदेवजी ने एक बार कहा था- 'यदि तुम्हारे मन में द्वन्द् आया है, यदि तुम्हारे मन की भटकन बढ़ी है, तो यह प्रसन्नता की बात है, क्योंकि तुम्हारी यही भटकन, तुम्हारा यही जिज्ञासु भाव, तुम्हारी यही खोजी प्रवृति एक दिन तुम्हें सफलता उच
சஸ்நேஹ் அபகி நான்
ஷோபா ஸ்ரீமாலி
பெறுவது கட்டாயமாகும் குரு தீட்சை எந்தவொரு சாதனத்தையும் செய்வதற்கு முன் அல்லது வேறு எந்த தீக்ஷத்தையும் எடுப்பதற்கு முன் மதிப்பிற்குரிய குருதேவிடமிருந்து. தயவு செய்து தொடர்பு கொள்ளவும் கைலாஷ் சித்தாஷ்ரம், ஜோத்பூர் மூலம் மின்னஞ்சல் , , Whatsapp, தொலைபேசி or கோரிக்கை சமர்ப்பிக்கவும் புனித-ஆற்றல் மற்றும் மந்திரம்-புனிதப்படுத்தப்பட்ட சாதனா பொருள் மற்றும் கூடுதல் வழிகாட்டுதல்களைப் பெற,
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